विविधता ही पहचान

हरियाणा के फरीदाबाद में हर वर्ष मनाये जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला धूम-धाम से मनाया जा रहा है। अपने 37वें पुनरावृ‌त्ति के साथ यह अंतराष्ट्रीय मेला 2 फरवरी 2024 से 18 फरवरी तक चलेगा। हर बार नए थीम राज्य और पार्टनर देश की तरह इस बार शिल्प मेले का थीम राज्य गुजरात है और पार्टनर देश तनजानिया है।

अफ्रीका महद्वीप के साथ एशिया, यूरोप, के करीब 40 देश इस हस्तशिल्प मेले में अपने' वस्तुओं की प्रर्दशनी लगाये हुए हैं। भारत के हर राज्य से भी लोगों ने अपने अपने को खास वस्तुओं यहाँ बेचने के लिए लाया हुआ है। अफ्रीका के सीपों की माला से लेकर अफगानिस्तान के कालिन लगभग हर देश ने अपने हाथों से बनाये गये वाली विशेष वस्तुओं को लाया है। वस्तुओं के साथ सांस्कृतिक नृत्य के लिए भी मंच तैयार है। जैसे इस वर्ष तनजानिया पार्टनर देश है, इसलिए वहाँ के लोक नृत्य के साथ-साथ अन्य अफ्रीकी देशों  का भी लोक नृत्य प्रस्तुत किया जा रहा है। इन लोक नृत्यों में कई कहानियाँ बताई जाती हैं। जैसे नाइजिरिया द्वारा प्रस्तुत बीनी नृत्य में वहाँ के राजा के प्रति अपनी श्रद्धा को प्रस्तुत करने के लिए किया जाता था ।

भारत में रहने के विविधता से चौंके नहीं, पर विविधता देख मन में उत्साह जाग जाती है। नृत्य-गीत उस संस्कृति और समाज का आइना जैसे होता है,जिससे उसे समझने में मदद मिलती है। अपने लोक नृत्य के लिए पारम्परिक पोशाख पहने अफ्रीकी देशों के लोग जब नृत्य समाप्त कर, बाहर निकल रहे थे, तो लोग लाइन से उनके कारण शायद हम उनके साथ फोटो खिचवा रहे थे। साथ यह देख उन्हें भी अपनापन महसूस हो रहा हो।

मेले में दुकानें बदलती गई दुकानों लोग बदलते गये ऐसा लगा मानो जल्दी-जल्दी विश्व भ्रमण कर लिया। जैसे-जैसे दुकानें बदल रही थी, उसी के साथ दुकानों पर रखें वस्तुएँ भी बदल रही थी। तब लगा इन्सान प्रकृति के साथ जीवन जीता है। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में बारिश ज्यादा होती है तो वहाँ के लोग बाँस के वस्तुएँ अधिक बिकने को थी। दक्षिण भारत में लकड़ी ज्यादा होती है तो बड़े-बड़े लकड़ी के फनीचर की दुकानें लगी हुई थी। अफ्रीकी देशों के गहने सीपियों के थे। ठंडे देशों के लोग ऊन के वस्त्र लाये थे। यही विविधता ही सबकी अपनी पहचान बन कर दिखाई दे रही थी।

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Rahul Charas

प्रशिक्षु पत्रकार📝, भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली।