पौष्टिक भोजन में कमी के कारण बच्चों में नहीं हो पा रहा शारीरिक और मानसिक विकास

2023 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार भारत 125 देशों में 111वें स्थान पर है। इसके बावजूद भी भारत में 2022 में 55 किग्रा. और 2021 में 50 किग्रा. की प्रति व्यक्ति घरेलू भोजन की बर्बादी हुई है। भारत में खाली पेट सोने की परेशानी के साथ-साथ बच्चों और महिलाओं में पौष्टिक भोजन की कमी से उनके शारीरिक और मानसिक विकास में कमी देखी गई है।

अगर हम बात करें कि भारतीय सरकारों द्वारा ऐसे कौन से योजनाएँ चलाए जा जिससे गरीब लोगों तक पौष्टिक भोजन पहुंचाया जा सकता है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 के तहत 75 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी नागरिकों को सब्सिडी आधारित खा‌द्यान्न पदार्थ प्राप्त करने का अधिकार देता है। यह अधिनियम सभी राज्यों और केन्द्र प्रशासित प्रदेशों में लागू किया गया है। जिसके तहत लगभग 81.35 करोड़ लोगों को सब्सिडी आधारित खाद्यान्न पदार्थ दिया जा रहा है। राष्ट्रीय खाद्यय सुरक्षा अधिनियम में नागरिकों को 5 किलो, गेहूँ या चावल, एक किलो पसंदीदा दाल और एक किलो मुफ्त साबुत चना प्रदान किया जाता है।

हाल ही में प्रधान मंत्री ने PM गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत NFSA में आने वाले नागरिकों के लिए मुफ्त में अन्न देने की गारंटी दिया है। पहले प्रधानमंत्री गरीब कल्याण में अन्न योजना दिसम्बर 2023 में समाप्त किया जा रहा था, जिसे प्रधानमंत्री ने पांच सालों के लिए बढ़ा दिया है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS)

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) सस्ती कीमतों पर खाद्यान को बाँटने के प्रबंधन की एक प्रणाली के रूप में विकसित हुई है। यह प्रणाली केन्द्र सरकार की और राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों की संयुक्त जिम्मेदारी के तहत आता है। जिसमें केन्द्र सरकार ने भारतीय खाद्य निगम (FCI) के माध्यम से राज्य सरकारों को खाद्यान्न की खरीद, भंडारण, परिवहन और थोक आवंटन की जिम्मेदारी संभाली है। जबकि, PDS के तहत वर्तमान में राज्यों और केन्द्र‌शासित प्रदेशों को वितरण के लिए गेहूं, चावल, चीनी और मिट्टी का तेल जैसी वस्तुएं आंवटित की जा रही है। कुछ राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश PDS दुकानों के माध्यम से बड़े पैमाने पर उपभोग की अन्य वस्तुएं जैसे दाले, आयोडीन युक्त नमक, खाद्य तेल और मसाले आदि भी दी जाती है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली 1960 के दशक में गंभीर खाद्य कमी से उत्पन्न हुआ था। हरित क्रांति के बाद PDS की पहुंच आदिवासी ब्लॉकों और और गरीबी की उच्च घनत्वों वाले क्षेत्रों तक बढ़ा दी गई थी। भारत में अन्न वितरण की एक मजबूत प्रणाली है। जिसके तहत गरीबों तक कम से कम रूपये में अन्न पहुंचाया जाता है।

अंतोदय अन्न योजना

इस योजना के तहत जो लोग गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के परिवार है, उन्हें अत्यधिक रियायती दर पर खाद्यान्न पदार्थ उपलब्ध कराना शामिल था। यह परियोजना दिसंबर 2000 में शुरू किया गया था। 2005 में इस योजना के तीसरे विस्तार के साथ 2.50 करोड़ गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को कायदा पहुंचाया जा रहा है।

ईट राइट इंडिया आंदोलन

भारत सरकार और भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) एक पहल है, जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के अनुरूप है। इस अभियान का उद्देश्य अच्छे भोजन आदतों को बढ़ावा देने के साथ ऐसे भोजन को भी बढ़ावा देता है, जो पृथ्वी के लिए भी अच्छा हो। अभियान का मिशन 2050 तक सभी के लिए सुरक्षित, स्वस्थ और टिकाऊ भोजन की संस्कृति बनाने का है। इसका लक्ष्य भारतीय भोजन में नमक, चीनी, तेल में कमी लाने के साथ उसे ट्रांस फैट मुक्त बनाना है।

एकीकृत बाल विकास योजना (ICDS)

एकृकीत बच्चों को पूरक पोषण, टीकाकरण और प्री-स्कूल शिक्षा प्रदान करने वाली बाल विकास योजना (ICDS) है। यह योजना बच्चों के समग्र विकास के लिए 1975 में शुरू किया गया दुनिया के सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक है। इस योजना के तहत बच्चों और गर्भवती महिलाओं का पोषण सुनिश्चित करना है। अब इस योजना का नाम बदलकर आंगनवाड़ी सेवा कर दिया गया है। अभी आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 का अभियान चल रहा है।

इस योजना का उद्देश्य 0-6 वर्ष की आयु के वर्ग के बच्चे, किशोरियों और गर्भवती महिलाओं के पोषण और स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार करना है। यह योजना के तहत बच्चों के उचित मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और सामाजिक विकास की नींव रखना है। भारत में बच्चों के मृत्यु दर, रुग्णता, कुपोषण और स्कूल छोड़ने की घटनाओं को कम करना भी है। उचित पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से बच्चे के सामान्य स्वास्थ्य और पोषण संबंधी आवश्यकताओं की देखभाल करने की माँ की क्षमता को बढ़ाना भी है।

पोषण अभियान के अंर्तगत पोषण वाटिका का भी विस्तार किया जा रहा है। जिसके तहत एक अच्छा और पोषक भोजन लोगों को अपने घरों में की प्राप्त हो सके।

फूड फोरटीफीकेशन इनिशेटिव (FFI)

अगर हम केवल भोजन का ही सेवन करें और दूसरी जरूरत की न्यूट्रीशन न लें तो हमारे शरीर में न्यूट्रीशन की कमी रहेगी। यह अभियान के तहत माइक्रो न्यूट्रीशन पर ध्यान दिया जाता है। लगभग 70% भारतीयों में माइक्रो न्यूट्रिशन की कमी बाई जात है।

FFI का लक्ष्य अगले पांच सालों में 402 मिलियन लोगों तक गेहूं का आटा और चावल पहुंचाना है। FFI काम से हरियाणा राज्य में PDS के माध्यम से पांच जिलों में फोर्टिफाइड आटा (एक प्रकार का साबुत गेहूँ का आटा) की आपूर्ति से 33 लाख लोगों को लाभ पहुंचाया गया है। और मध्याह्न भोजन और एकीकृत बाल विकास योजना के माध्यम से हरियाणा के सभी जिलों में फोर्टिफाइड आटा उपलब्ध करना शुरू कर दिया है। जो 1.4 मिलियन स्कूली बच्चों और 104 मिलियन ICDS लाभार्थियों तक पहुंच रही हैं।

पूरी तरह से लागू होने पर यह योजना हरियाणा के 12.6 मिलियन लोगों के पोषण में सुधार करेगा। FFL के इस मॉडल की तरह अन्य राज्यों विशेष रूप मे महाराष्ट्र, राजस्थान और प.बंगाल की सहायता करेगा।

अगर हम देखें तो, भारत में प्रत्येक 10,000 जन्मों में से 45 (जीवित जन्म और मृत जन्म) में मस्तिष्क या रीढ़ की हड्ड़ी में खराबी होती है। 25.6 मिलियन वार्षिक जन्मों के साथ, यह हर साल मस्तिष्क या रीढ की हड्ड़ी के 115,390 जन्म दोषों के बराबर है। यह समस्या फोलिक एसिड (विटामिन बी9 का एक रूप) का पर्याप्त सेवन हर पांच साल से कम उम्र के बच्चों में 100,000 से अधिक मौतों को रोक सकता है।

खाद्य सुरक्षा की चुनौतियां -

खेती कहने को तो भारत में सबसे अधिक रोजगार देती है। लेकिन कृषि में धीरे-धीरे कमी हो रही है। इसके पीछे कई कारण है, ग्लोबल वार्मिंग, मृदा अपरदन, कृषि से नुकसान, खेती में तकनीक की कमी आदि । भारत में छोटे किसानों की संख्या अधिक है। अगर हम डाटा देखें जो तो 2012-13 में जो 60% किसान थे, वह घट कर 2018-19 में 54% रह गई हैं। इससे हमें पता चलता है कि लोग अपनी आजीविका के लिए दूसरे विकल्प ढूँढ़ रहे हैं।

आपूर्ति श्रृंखला -

भारत अपने खाद्य पदार्थों का पूरा उत्पादन स्वयं नहीं कर पाता है। इस कारण भारत को दूसरे देशों से उसकी आवश्यकता को खाद्य पदार्थ का आयात करना पड़ता है। दूसरे देशों से आयात में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। दुनिया में स्वास्थ्य संकटों, आपदाओं और भू-राजनीतिक घटनाओं जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आपूर्ति श्रृंखला में समस्या आती रहती है। जब भारत अपने खाद्य पदार्थों का आयात कर रहा है तो उसकी कीमत ज्यादा होती है। जिस कारण आयात की हुई वस्तु महंगी होती है। जो असमान वितरण की समस्या पैदा करती है। असमान वितरण के कारण खाद्य पदार्थों की वे वस्तुएँ जो शारीरिक विकास के लिए आवश्यक होती है, वो गरीबों तक नहीं पहुंच पा रही है। इसलिए ‘फैटर गेट फैटर एण्ड थिनर गेट थिनर’ की समस्या भारत के में देखी जा सकती है।

भारत सरकार इतने प्रयासों के बावजूद भी भारत की स्थिती में सुधार में कमी देखी जा सकती है। हंगर इंडेक्स 2023 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 35.5% पाँच वर्ष से नीचे के बच्चों में सही से कद नहीं बढ़ने की समस्या और 16% बच्चों को पोषक खाना नहीं मिलने, 18.7% बच्चों का अपनी उम्र के अनुसार विवेक या मस्तिष्क की वृद्धि नहीं होने, 3%, बच्चों की मौत पोषक भोजन न मिलने की वजह से हो रहा है।

भारत में गर्भवती महिलाएँ जिनकी उम्र 15-49 है, उनमें अनिमिया की 50% की समस्या पाई गई है। WHO के अनुसार 40% से अधिक की समस्या गंभीर है। गर्भवती महिलाओं में अनिमिया की समस्या में भारत विश्व में सबसे ऊपर पहले स्थान पर है।

द स्टेट ऑफ फूड स्किीयोरटी एण्ड न्यूट्रीशन इन द वलर्ड के अनुसार भारत का लगभग 74% की जनसंख्या भोजन के लिए पोषक खाना नहीं खरीद सकता है। इस रिपोर्ट और भारत सरकार के लगातार चलाये जाने वाले अभियानों से यह पता चलता है कि भारत आजादी के 75 साल पूरे होने के  बाद तक भी अपने लोगों को पोषक भोजन देने में अमर्मथ है। अगर हमें दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना है तो सरकार को भारतीय नागरिकों को पोषक भोजन देना होगा, जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास अच्छे से हो सके।

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Rahul Charas

प्रशिक्षु पत्रकार📝, भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली।